नई मुर्गी हलाल है
आज काजियों ने की नई मुर्गी हलाल है
माशुका गई ,मुर्गो को तो इसका मलाल है
सुना सुना हो गया सारा गुलशन अपना
बुझी बुझी जिंदगी अपनी हुई बदहाल है
कोई तो बताएं यह कैसा है आजाद देश
जो जल्लाद उठाता आजादी के सवाल है
नंगा नाच घर घर देखा अब मुफलिसी का
रोटी कपड़ा और मकान का तो तंग हाल है
बोलने की छूट जिसको भी दी सविधान ने
दिन दिहाडे जल्लाद फिर बन रहें मिसाल है
नया मौसम आया तो सोचा रच दूँ गीत नया
लोग पढ़के कहने लगे पुरानी हड्डी नई खाल है
अब तो सन्सद में जाने लगे चोर उच्चके यारों
दूर तक ये चर्चा इससे अच्छी गाँव की चौपाल है
जिसकों भी शेर समझकर भेजा हमने सन्सद में
देश लूटने को आया भेड़ियाँ पहन शेर की खाल है
आशिक था अशोक मुर्गा मुर्गी का अपने फिर क्यों
न्याय की आशा करता लगता आया इसका काल है
मेरी मुर्गी तो गई जान से और सब सोच रहें मुर्गे की
देश का हाल बता रहा कमबख्त आज तू भी हलाल है
अशोक सपड़ा हमदर्द