नई बातें
सुना है
औरत ने बनते वक्त मांगे थे और पा लिए
ममता, प्रेम, पालन और विकास सरीखे गुण।
आदमी ने बचे-खुचे ले लिए।
और औरत बन गई श्रद्धा।
…
सुना है
वो सब बातें पुरानी हो गईं…
क्योंकि
आदमी के पास थी शक्ति,
और औरत के पास सहन शक्ति।
सुना है
औरत का कोई घर नही रहा।
किसी लिफाफे पे उसका पता नहीं लिखा होता।
पराये मायके के फोड़े भी कम्बख्त फटते नहीं,
ना कटती परदेसी ससुराल की लक्ष्मण रेखाएं।
सुना है
खुली गांठ की गठरी की तरह हो गई वो
गठरी में छिपे शब्द उछलते… मेंढक की तरह –
आने को बाहर।
लेकिन दूसरे शब्द खींच लेते… उनकी टांगें –
मेंढकों की तरह ही…
कोलाहल युक्त – थमा जीवन – हुआ उन शब्दों का।
जनन यंत्र माना जिसे कब बचा रहा – खुदका कुछ।
…
सुना है
ये सब बातें भी अब पुरानी हो चुकी हैं।
अब कई शहरों में, कुछ कस्बों-गावों में भी।
औरत आदमी के साथ चाय पीती है।
लेकिन… आश्चर्य! आदमी की तरह ही!?