नई पीढ़ी पूछेगी, पापा ये धोती क्या होती है…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
ग़ाज़ीपुर शहर
गंगा की लहर
घाट किनारे
हाथ धोती थामे
सुखा रहे वृद्धजन
यह प्रेम भी है
संस्कृति की
विरासत का
संदेश भी है
पुरुष का धोती
तन ही नहीं
मन भी ढकता है
यह सदी का
वह वस्त्र है
जो इतिहास बनने के
राह पर खड़ा है…
…कुछ वर्ष
मिल जाएँगे
पहनने वाले
पर कुछ वर्ष बाद
यह सिर्फ़ बातों में
रह जाएगी
नई पीढ़ी पूछेगी
पापा ये धोती
क्या होती है…
पंकज तिवारी जी के फ़ोटो पर मेरी अभिव्यक्ति