* नई दृष्टि-परिदृश्य आकलन, मेरा नित्य बदलता है【गीतिका】*
* नई दृष्टि-परिदृश्य आकलन, मेरा नित्य बदलता है【हिंदी गजल/गीतिका】*
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(1)
नई दृष्टि-परिदृश्य आकलन, मेरा नित्य बदलता है
कभी व्यक्ति उपकारी लगता ,कभी जगत को छलता है
(2)
कभी सुबह को देखा सूरज ,उगता उत्साहित वाला
हुई शाम तो मिला सूर्य ,वह ही थक-थक कर ढलता है
(3)
कभी भरे संदूको में, धन-दौलत लगती है अच्छी
कभी खोलना उनके ढक्कन, भारी-भारी खलता है
(4)
कभी साँस का आना-जाना, पता नहीं कुछ चल पाता
दो साँसों के लिए कभी, जीवन हाथों को मलता है
(5)
कभी-कभी बढ़ता है तन ,कपड़े सब छोटे पड़ जाते
कभी बर्फ की पड़ी हुई, सिल्ली-सा क्षण-क्षण गलता है
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451