नई दिल्ली
हज़ारों ख़्वाब जनता को दिखाती है नई दिल्ली
मगर जनता को अक्सर भूल जाती है नई दिल्ली
न तो रहने न ही खाने का बंदोबस्त है कोई
मगर फिर भी ग़रीबों को लुभाती है नई दिल्ली
नई दिल्ली दिखाती है सभी को स्वर्ण के कंगन
दिखाकर स्वर्ण के कंगन फंसाती है नई दिल्ली
जिधर देखो अँधेरा ही अंधेरा है , मगर फिर भी
हमें लगता है ऐसा जगमगाती है नई दिल्ली
नई दिल्ली की बातों पर यकीं हरगिज़ न करना तुम
किसी को कुछ किसी को कुछ बताती है नई दिल्ली
शिवकुमार बिलगरामी