नई जगह ढूँढ लो
तुम अब घर से
बाहर भी मत निकलना
और तुम मत अब घर के
भीतर भी रहना ।
मत सोचना कि
चंद्र और सूर्य पर
या फिर इस पृथ्वी पर
एक देश में, किसी शहर में
किसी गांव में या मोहल्ले में
या फिर किसी मकान में
जिसे तुम घर बनाती हो
तुम्हारे लिए उस घर में भी
किसी कोने में भी
कहीं कोई ऐसी जगह है
जहाँ तुम्हारी मर्यादा
सुरक्षित है, रक्षित है ।
तुम्हें भेड़िये मिलेंगे
हर जगह, हर कहीं
तुम्हारे पीहर में
तुम्हारे पड़ोस में
तुम्हारे पति के घर में
तुमने जिसे मन से चाहा
उसके मन में आँगन में
तुम्हारे प्रेमी में
हर रिश्ते की ओट में
छिपे हो सकते हैं ये
भेड़िये,
इन्हें तुमसे कोई
लगाव नहीं,
प्रेम नहीं,
स्नेह नहीं,
दया भाव तो बिलकुल भी नहीं ।
तो तुम आज से ही
अपने लिए कोई नई जगह ढूंढ लो,
जो इस धरती पर तो हरगिज नहीं ।
(C)@*दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम् “*