नई किरण रोशनी की ….
नई किरण रोशनी की ….
जब गरम हवाएँ गालों को सहलाने लगे ,
नन्हें कदमों को जलाने लगे ,
चिड़ियाँ उड़ने की बजाएँ..
बसेरे में छिपने लगें,
नदी ,तालाब सूखने लगें,
रेगिस्तान ही रेगिस्तान नज़र आने लगें ,
बारिश को हम तरसने लगें,
आकाश की और तकने लगें
पानी की बून्द -बूँद के लिए लड़ने लगे ,
पेड़ से पत्ते बेजान झड़ने लगें,
समझों की अंत हैं तुम्हारा !
धरती तबाही पर है,मानव खुद के विनाश पर ..
फिर नई किरण निकल आएगी ,
संगम से धरती और मानव के ..
ज्योति एक नई सोच की प्रज्ज्वलित करेंगे
फिर खिलेंगे नए फूल ,नई कलियाँ l
आकाश फिर खुशियों से नम होगा ,
ज़ोरो की बारिश में ..
हर तरफ खुशियों का माहौल होगा l
लेखिका – मीनू यादव