नंगा चालीसा [ रमेशराज ]
लुच्चे छिनरे सिरफिरे रहें तुम्हारे साथ,
तुम घूमो हर नीच के डाल हाथ में हाथ |
नमो नमो नंगे महाराजा, लाज सबै पर तुम्हें न लाजा ||1||
झूठ तुम्हारे पांव दवाबै, तुम्हें न सच्ची बात सुहाबै||2||
तुम असुरों में असुर बड़े हो, घड़ों बीच तुम चीक घड़े हो ||3||
तुमने जबसे नाक कटायी, और नाक पर रौनक आयी ||4||
सूपनखा तुम सँग इतरावै, सीता को नकटी बतलावै ||5||
घूमो लिये भीम-सी काया, काया लखि तुम पै मद छाया ||6||
सौ गज की है जीभ तुम्हारी, जिसके आगे दुनिया हारी ||7||
तुम आओ जब पीकर पउआ, तो बन जाते घर में हउआ ||8||
गिरगिट जैसे रूप तुम्हारे, तुमने हर पल बादर फारे ||9||
रखो जेब में फूटी कौड़ी, बात करो पर लम्बी-चौड़ी ||10||
बिच्छू जैसे चलन तुम्हारे, किसके तुमने डंक न मारे ||11||
शकुनी मामा तुमसे हारा, छल में नहीं जवाब तुम्हारा ||12||
अपनी महिमा स्वयम् बखानो, लूट सभी को दानी मानो ||13
जयचंदों के फंदों को तुम, रोज सराहो गंदों को तुम ||14
मगरमच्छ-सा रूप तुम्हारा, लील गया सुख-चैन हमारा ||15
कर्कश काँव-काँव के आगे, कोयल हारे, पल में भागे ||16
बगुला जैसी घात तुम्हारी, कैसे बचे मीन बेचारी ||17
दिखती जितनी सूरत भोली, वाणी में उतनी ही गोली ||18
वाणी जब छोड़े अंगारे, अच्छे-अच्छों को संहारे ||19
जीत कमीनेपन से बाजी, तुम बन जाते पंडित-क़ाज़ी ||20
जिसको भी तुम अपना बोलो, केवल उसकी जेब टटोलो ||21
मेघनाद-सा तुम हुंकारो, सबको अपशब्दों से मारो ||22
पापी की सत्ता के दौने, कर्म तुम्हारे सभी घिनौने ||23
आदर्शों की बात करो तुम, बात-बात में घात करो तुम ||24
रावण-कुल को सदा सराहो, तुम सज्जन से बैर निभाओ ||25
छल की गाओ बारहमासी, चलो हमेशा चाल सियासी ||26
खुद को गौतम बुद्ध बताओ, मछली मारो, मुर्गा खाओ ||27
सम्प्रदाय को धर्म बताओ, घृणा-भरे चिन्तन को लाओ ||28
मगरमच्छ की तरह जिओ तुम, रोज किसी का खून पियो तुम ||29
तुम हो जैसे गुड़ के चैंटे, रन्ग बदलने में करकैंटे ||30
जिसके सर पर हाथ फिराओ, तुरत उसी की भस्म बनाओ ||31
रहे फूल ती सदा दलाली, जेब तुम्हारी रहे न खाली ||32
हे कउए गिद्धों के वंशज, तुमसे पावन भारत की रज ||33
मन लिया अब हमने डरकर, तुम कबिरा के ढाई आखर ||34
ऐ अधमासुर कृपा कीजिए, हमें देख मत और खीजिए ||35
अपना कोप सरल कर लीजे, वाणी सहज तरल कर लीजे ||36
रूप समेटो तुम मायावी, हम पर मत यूँ होओ हावी ||37
बार-बार मत हमें पछाड़ो, और न शेर-समान दहाड़ो ||38
मान लिया तुम ही महान हो, अतः इधर भी दया-दान हो ||39
हे भगवन् हे केशव ईसा, भेंट तुम्हें नंगा-चालीसा ||40
अब न कहेंगे आपको कभी भूलकर नंग,
केली चिरती है चिरे रह काँटे के संग ||
-रमेशराज
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रमेशराज,15/109, ईसानगर, अलीगढ़-२०२००१