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28 Jul 2020 · 1 min read

धौंस

पहले धौंस की अपनी
एक सड़क हुआ करती थी,

जो विदेशों से निकल कर
महानगरों मे पहुँच कर
नगरों, शहरों, कस्बों
से होती हुई
खीझती हुई
गांवों के पक्के मकानों
के बीच गुजरती ,
फिर गलियों मे
भुनभुनाती हुई
घुसकर,
पगडंडियों की ओर मुड़कर
कहीं दूर निकल जाती थी

ये सिलसिला दशकों तक चला,

फरमान,समझदारी, सलीका और न जाने
क्या क्या,
इसी रास्ते से
गुजरकर,
कई अरसे के
बाद ,
पगडंडियों तक आते थे

देहातों को गांवो का
शहरों को नगरों का
महानगरों को विदेशों का
बड़बोलापन भी,
दासता की तरह मंजूर रहा।

कमबख्त ये टेलीविज़न
और मोबाइल बाजारू और
निर्लज़्ज़ हो गए।
और सीधे पगडंडियों तक
पहुंच कर बैठ गए।

बिचौलियों के
जाते ही
सालों का
बोझिल सफ़र
मिनटों मे तय होने लगा।

धौंस अब बुढ़ी सी
लाठी टेकती हुई अपनी
टूटी फूटी सड़क पर
दिखती तो है।

बस इस नकचढ़ी बुढ़िया को
अब कोई ज्यादा भाव नही देता।

Language: Hindi
4 Likes · 7 Comments · 456 Views
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