धोखेबाजों के चक्कर में, अपना जीवन नहीं गंवाना
प्रीत लगा मुख मोड़ गया, बीच डगर में छोड़ गया
दिल यह चकनाचूर हुआ, आंसू पीने मजबूर हुआ
जग में मुझको बदनाम किया, तोहफे में इल्जाम दिया
परिजन भी आंखे फेर गए, समाज के ताने मार गए
हर ओर घना अंधियारा है, कोई दर्द ना देखना हारा है
क्यों बह गई में जज्बातों में, झूठे प्यार की बातों में
किससे अपनी बात कहूं, या जीवन लीला खत्म करूं
डरकर जीवन न हारूंगी, संग्राम में तुझको मारूंगी
सौंदर्य और लालित्य समेट, काली का रूप दिखाऊंगी
भोली भाली बालिकाओं को, धोखेबाजी से बचाऊंगी
जागरूक करूंगी स्त्री को, अस्मिता उसकी बचाऊंगी
सोच समझकर कदम बढ़ाना, मीठी बातों में न आना
प्यार के नाम पर अपनी इज्जत, तार-तार न होने देना
लड़की होना अभिशाप आज भी, दोहरे समाज पर यकी न लाना
कितना भी प्यार जताएं कोई, शारीरिक दूरी सदा बनाना
धोखे बाजो के चक्कर में, अपना जीवन नहीं गवाना
सुरेश कुमार चतुर्वेदी