धोखे खाकर उभर
थोडे से और रुक जाते, जल्दी भी क्या है,
विश्वास में लेकर जनता को,धोखे दिए है.
अभी बहुत लोग है,इसी पथ के मुसाफिर.
लोग भी बडे जटिल हैं,बने रहते हमसफर.
उनके समर्थन भी ले लेते, फिर मौके नहीं.
अहसास तो तूझे भी है,उजागर करते नहीं.
तू कर जो तूझे करना है,कोई रोकेगा नहीं.
संभल रहा नहीं घर, मंहगाई का असर नहीं.
धोखे खाने वाले उभरे हैं, धोखेबाज नहीं.
परिपाटी है ये प्रचलन की,धर्म की नहीं..
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस