धोखेबाज शेर
शेर था धोखेबाज बहुत ही
चलता था पर लाठी टेक।
एक दिन आया एक सियार
भाग रहा था शेर को देख।।
बोला शेर जरा रुक भाई
तुझे नहीं मैं खाऊंगा।
दिखता ना आंखों में मेरी
घर तेरे संग जाऊंगा।।
बोला वो विश्वास नहीं है
खा जाओगे मार मुझे।
साधू बनते, हो शैतान
आती न क्या लाज तुझे।।
अब तो मैं बलहीन हूं यारा
क्या तेरा कर पाऊंगा।
मदद मिलेगी अगर मुझे तो
पहुंच मैं घर तो जाएगा।।
आई दया उसे फिर बोला
चलो शेर तुम अपने घर ।
तुम पर तो विश्वास किया है
त्याग दिया है अपना डर ।।
जैसे आया पास शेर के
झपटा मारा, पकड़ लिया।।
रोया इतना और पछताया
क्यों इस पर विश्वास किया।।
दुश्मन हो बलवान या निर्मल
मत करना उस पर विश्वास।
दुश्मन पर विश्वास करोगे
निश्चित होगी तुम पर घात।।
विजय बेशर्म