धोखेबाज इंसान
मैं एक सुनसान वन में,
भटक रहा इधर- उधर,
तफतीश रहा मंजिल को,
तंग हो गया वन से ।
तब मिला मुझे कोई,
मंजिल तक पहुँचाने वाला,
जिसने मुझे अरथाया राह ,
जिस राह पर पधारकर ही मैं,
कामयाबी की कुछ सीढ़ियाँ चढ़ी।
जिसने मुझे राह बताया,
वह दिखने में अविकल लगता है,
पर वह इतना मंदा इंसान है,
जिनकी व्याख्या करने को,
शब्द हमारे कम जाते है।
जब मालूम हुआ हमें कि,
कितना धोखेबाज है वो,
एक क्षण हम स्थिर हो,
न विश्वास हो रहा था हमें,
पर साक्षात् सबूतों को देख,
उस पर से विश्वास उठ गया मेरा।
नाम :- उत्सव कुमार आर्या
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार