‘धोखा’
प्रीत थी ख़ूब, जताई उसने,
फ़लसफ़ाई भी, सिखाई उसने।
चाँदनी रात मेँ, मिलना उसका,
गीतिका, इक थी, सुनाई उसने।
चाँँद शरमा के, छुपा बादल मेँ,
रम्यता, ख़ूब थी, पाई उसने।
हर क़दम, साथ वो देगी मेरा,
शपथ भी ख़ूब थी, खाई उसने।
कैसे कह दूँ, कि उसे ज्ञान न था,
नीति की बात, बताई उसने।
मित्र बनकर, थी जगाई “आशा”,
शत्रुता, दिल से, निभाई उसने..!
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