“धोखा और धोखेबाज”
मायूस चेहरा,
मासूम इरादा
कहाँ परख पाता है
धोखा और धोखेबाज को,
बेखबर अनजान,
करे भी क्या,
संघर्ष भी सिमट जाता है,
एक रोज,
हार जाते हैं
या
हरा दिया जाता है
एक कूटनीति
जाल-जंजाल
षडयंत्र रचकर।
अकेला जीव घिर जाता है,
खूंखार आदमखोर जानवरों से
जो डराते हैं,
फिर नोंचते हैं,
असहाय छोड़ देते हैं
मरने के लिए।
ऐसे निर्दयी
हैवान से कम नही होते
ये वहशी,
शब्द नही होते
परिभाषित करने को।
बस कोस सकते हैं
या
बद्दुआ ही कर सकते हैं
इनके बुरे अंत के लिए।
या
फिर
अपने आपको मजबूत बनाकर
घर-समाज-अपने मूल्यों से
विमुख होकर
बदल सकते हैं
गुलामी के माहौल को।
उनकी ही भाषा में
उनके ही अंदाज में,
प्रतिकार से।
निश्चित कुछ भी नहीं,
शून्य से शतम
या
शतम से शून्य।
-सुनील सैनी “सीना”,
राम नगर, रोहतक रोड़,
जीन्द (हरियाणा)-126102.