धैर्य रख…
गुजर रही है जिंदगी ,
ऐसे मुक़ाम से।
अपने भी दूर हो जाते हैं,
जरा सी जुकाम से।।
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छुपा रहे हैं मुँह दोषी ,
जैसे हाकिम हुकाम से।
अब उल्फत भी बेवफ़ा सी,
दिख रहीं हैं इस जहाँन से ।।
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उनका मिलना भी ,
हो तो कैसे हो ?
इक अदृश्य भारी पड़ गया ,
सुनामी तूफान से।।
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गर छा गए हैं बादल,
दुःख के गुमान से।
रखना है तुझे धीर भी,
सुख के अरमान से।।
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गति समय की न जाने कोई,
आँधी तूफान से।
दुःख आये हैं तो जाएंगे भी ,
इस जहांन से।
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