धृतराष्ट्र थे जन्मांध
धृतराष्ट्र थे जन्मांध,
सुनयना थीं गांधारी।
पटका बाँध बनीं निरंध,
ओढ़ ली लाचारी।
अविवेकी मन कुंठित बुद्धि ने,
करी वंश वृद्धि।
सौ पुत्रों को दिया जन्म,
कुविचारों की हुई सृष्टि।
पुत्र मोही राजा रानी,
पुत्रों को दे न सके संस्कार।
उनके धर्म विरोधी कार्यों का,
कर न सके प्रतिकार।
जो कहा पुत्रों ने वही,
सत्य मान लिया।
दृष्टिहीन होने के कारण,
नहीं संज्ञान लिया।
उचित मार्ग दर्शन के अभाव में,
कुरु वंश में अनीति विस्तारित हुई।
उनका दंभ और अनीति,
महाभारत में निस्तारित हुई।
काश ! महारानी गान्धारी,
नयनी ही रहतीं।
नहीं होता महाभारत,
वंश नाश का दुःख नहीं सहतीं।
वे नहीं ओढतीं कृत्रिम अंधता,
बाँध कर पटका।
पति, पुत्रों और राज्य का,
करतीं बहुत भला सबका।
जयन्ती प्रसाद शर्मा