“धूल”
धूल
करती रही साफ़ दीवारों पर लगा मकड़जाल,
घर के कोने-कोने में छिपी धूल को,
पर उस धूल का क्या?
जिसने धूमिल कर दिए इन्सान के हृदय,
या फिर वो धूल….
जो दिमाग के किसी कोने का हिस्सा थी?
क्यूँ नहीं पहचान पाई मैं,
अपने ही हृदय की पारदर्शिता को,
हाँ,पारदर्शिता ही तो है,
जो मेरे तेरे सबके हृदय का अंश है,
जान लूँ पहचान लूँ ,
दिल में छिपे परिंदे को नया सा आयाम दूँ ,
ताकि फिर से साफ़ करनी पड़े मुझे ,
हृदय पर पड़ी धूल…हाँ, मेरे ही हृदय पर पड़ी धूल।।
✍स्वरचित
माधुरी शर्मा “मधुर”
अम्बाला हरियाणा।