‘आतंकवाद से छोड़ दे यारी’
आतंकवाद से क्यों करता यारी,
मानवता के हित में ये है गद्दारी।
पाया आकर तूने क्या इस जग में,
जो करता हरदम जाने की तैयारी।
अपनेपन से तू रहा सदा अनजाना,
भाव दुश्मनी का क्यों रखता भारी।
मिलजुलकर रहना जो आ जाये,
जानेगा यह दुनिया ही जन्नत सारी।
जिस मिट्टी से भोजन पानी पाता,
वो होती है जननी सम हितकारी।
जियो खुशी से सबको जीने दो,
कहलाएगा क्यों तू फिर अत्याचारी।
एक ही मालिक के हम सब बंदे,
सब जान हैं उसको एक सी प्यारी।
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी