# धूप छांव #
छांव तो है एक छलावा, धूप मन का है भरम l
रात या दिन कर रहे, दोनों के है अपने करम ll
धूप में टपके पसीना, जो कभी तेरे बदन l
छांव तकती राह है, तू चल रहा अपने धरम ll
धूप हो या छांव का पल काम चलना ही तेरा l
जिंदगी के काम आने, में ना हो कोई शरम ll
जो कभी रस्ते सुकोमल, या के कांटों से भरे l
करना पूरा ही सफ़र है, हो नरम या के गरम ll
कुछ भी शाश्वत है नहीं, पल पल बदलता है जहां l
जो अडिग हो फैसला तो, धूप पड़ती है नरम ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l