धूप
आ गई है धूप
आँगन में सुनहरी
और फुदकने लगी है
गौरैया भू पर
सुबह की प्रिय गुनगुनी
इस धूप में
पंख फैलाये
खड़ा है मोर ऊपर
हरे तोते जा रहे हैं
दूर उड़ते
टिटहरी भी बोलती है
तोड़ पहरे
और बटोही चल
पड़े हैं पैर नंगे
सिरों पर बोझा लिए
मन मस्त गहरे
पर्वतों की ओर
जाते साथ उघड़े बदन बच्चे
भूलकर रातों की
ठिठुरन की व्यथा को
और कोमल फूल पर
तितली उड़ी है
साधती सी
प्रेम की रसमय कथा को
हो गई है भोर
सूरज की अलौकिक
ध्वजा फहरी
आ गई है धूप
आँगन में सुनहरी
✍️सतीश शर्मा ।