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25 Dec 2020 · 1 min read

धूप

गीतिका आधार छंद : बरवै मात्रिक
विधान : १९ मात्राएँ, १२ एवं ७

सुबह सबेरे जब भी, आई धूप।
सबके मन को कितना , भाई धूप।

जगमग जगमग करती, आती नित्य,
नील गगन में ऐसे, छाई धूप।

सोने जैसा लगता, इसका रूप,
किरण सुनहरी रवि से, पाई धूप।

लिखकर पाती भेजे, सुख के नाम,
वसुंधरा पर जीवन, लाई धूप।।

चमके मोती जैसे, बिखरे ओस,
घास- पात पर जब भी, गाई धूप।

सर्दी में करती है , ठंढक दूर,
तब लगती जैसे हो , माई धूप
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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