धूप
कड़कती ठिठुरन में
तन को सहलाती है।
सुखद प्रेम स्पर्श दे
उमंग भर जाती है।
आकाश से उतरती
संवारती धरा सब
खेतों में पका अन्न
सांझ ढले जाती है।
रात के सब स्वप्न को
साकार करने के लिए
धूप अपने साथ ही
सब यत्न भर लाती है।
पौधों को भी भोजन
धूप से ही मिलता है।
रिक्त घट सब बादलों के
वो समुद्र से भर लाती है।