धूप से झुलसे बदन
गीत
2122 2122 2122 212
धूप से झुलसे बदन, जलते ये कोमल पाँव हैं ।
याद आते तब तरु देते जो शीतल छाँव हैं।।
कमरों में ही कैद हैं, शहरों में सब हैं अजनबी।
सुन खबर आँगन में मिलते जाते जब भी गाँव हैं।।
आते हैं मेहमान अब तो, फोन करके पूछकर।
अब नहीं मुंडेर पर कौए ही करते काँव हैं।।
दुल्हनों सा घर सजाने काटते हैं वन यहां।
पंछियों का अब नही कोई ठिकाना ठाँव हैं।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव