धूप पूजती पाॅंव धरा के
सप्तर्षि का कंगन पहने
अंबर कुछ मुस्काता है।
धीमे-धीमे, सॅंवर-सॅंवर कर
चंद्र किरण बिखराता है।।
धूप पूजती पाॅंव धरा के
जलधि प्रणाम सुहाता है।।
डोल-डोल कर मलय प्रफुल्लित
सरगम गान सुनाता है।
मन भीतर विश्वास उपजता,
भोर शगुन दे जाता है ।
स्मृतियों से दहक-दिवस
चहुं ओर अगन ले आता है।।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ