धूप का एक कोना छिटक जाता है
धूप का एक कोना छिटक जाता है
ज़िंदगी का वक्त निकल जाता है।
खाहिशों के अक्स में ढलती है ज़िन्दगी
अक्स टूटा और अक्स बिखर जाता है।
चाहते हैं सकूं हो पर दर्द न हो
कभी दर्दे दिल भी दवा बन जाता है।
नुक्ता ए ज़िन्दगी समझ नहीं पाते
इस बेकसी में वक्त गुज़र जाता है।
रात गहराई है फिर सहर होगी
जागते ही नया ख्वाब उभर आता है।
विपिन