धुन के पक्के होते हैं किसान!
घर-खेत हो या खलियान ,
या फिर हो वह कोई मैदान,
ना कभी रुके-ना कभी थके,
धुन के पक्के होते हैं किसान!
खेत को बनाकर,बीज बो आते,
गर्मी-शर्दी से ना घबराते,
पाला पड़े या लू के थपेड़े,
चलें आंधियां,या बरखा खदेड़े,
ये ना रुके हैं,ना ये झुके हैं,
धुन के पक्के होते हैं किसां,
उसकी मेहनत उसकी कसरत,
जो उग आए उसकी किस्मत,
कुछ रख लेता अपने घर को,
ले जाता कुछ बाजार को,
औना- पौना जो भी बिकता,
लुट- पिट कर घर आ जाता !
बार बार वह आस लगाता,
दाम मिले उसे, उसकी लागत का,
हर बार वह छला है जाता,
न्यूनतम दर पर भी ना कोई खरीदता,
बस बातों ही बातों में उलझाए रहता!
इस बार उसे तीन कानून मिले,
जहां चाहे वह फसल को बेच ले,
वह चाहे तो खेतों को गिरवी रख लें,
वह चाहे तो ठेकेदारी पर दे दे,
बस उसे न्यायालय की दरकार नहीं है
बस उसकी फसलों को मंडी बाजार नहीं है,
अधिकारी ही उसकी फरियाद सुनेंगे,
अधिकारी ही यहां न्याय करेंगे,
इससे ज्यादा का वह हकदार नहीं है,
खरीददार से ज्यादा उसका अधिकार नहीं है!
बस यही बातें उसको रास ना आई,
अब उसकी ख़ुद्दारी ने ले ली अंगड़ाई,
वह विरोध की अलख जगाने लगा,
अपने संगी साथियों को समझाने लगा,
खेत भी उसका, मेहनत भी उसकी,
फिर भी कहीं नहीं सुनी जा रही है उसकी,
अबकी बार हम ना झुकेंगे,
हम ना रुकेंगे,हम ना थकेंगे,
बोरा बिस्तर लेकर चल दिए,
राज सत्ता को जगाने चल दिए!
रोका जो उन्हें तो वह वहीं बैठ गये,
दिन निकले, हफ्ते निकल गये,
निकल गये कई माह,
बस बैठे ही रहे लिए हुए यह चाह,
सरकारी कोई भी बाजीगरी न चल पाई,
और आखिर में निकली बस यही आह,
बहुत समझा कर भी ना समझा पाए,
माफ़ करना मुझे मेरे भाई,
वापस लेते हैं हम ये कानून,
हो गये हैं हम परेशान,
किसान बोले ना बाबा ना,
अब ना बनेगी ये बात,
न्यूनतम दर पर खरीदारी करें,
तब बनेगी बात,
शहीद हुए हैं जो साथी,
उनका भी हर्जाना दोगे,
बिजली पानी के दामों का भी,
एक निर्धारित पैमाना रखोगे,
घास पराली के जलने पर,
ना कोई जुर्माना होवे,
जुल्म ज्यादती जिसने भी की है,
उस पर भी उचित कार्रवाई होवे!
तभी करेंगे हम सड़कें खाली,
तभी करेंगे हम घर की वापसी,
सरकार ने अब जान लिया,
आखिर किसान की बात को मान लिया,
बड़ी जद्दोजहद के बाद, जागा है किसान,
अपनी बात पर आकर डट गया है किसान,
लगा अबकी बार ना बहकेगा किसान,
ये ना उठेंगे,ये ना झुकेंगे,
अब जाग गया है किसान,
अपनी धुन का पक्का है किसान!!