धुआं हो जाएंगे नफ़रतों के बादल
देखना इकदिन हथेली पे जान रख देंगे!
ज़मीं पे सर कदमों मेंआसमान रख देंगे!
धुआं हो जाएंगे सब नफ़रतों के बादल,
बंदों के हाथमें गर गीता-क़ुरान रख देंगे!
मिट जाएगा झूठ सियासत से इक रोज़,
तेरे मुंह में हम जो अपनी ज़बान रख देंगे!
घर होगा ऐसा बहेगा जहां इश्क़-ए-दरिया,
और नाम उसका फिर हिंदुस्तान रख देंगे!
मंदिर -मस्जिद में मिला क्या ख़ुदा कभी,
अब दिलों में हम सभीकेभगवान रख देंगे!
ग़म की धूप में हो उदासी के जब बादल,
आंगन में खुशियों का गुलदान रख देंगे!
आंच आ सकती है कैसे मुल्क को मेरे,
सरहद पे जांबाज़ जब निगहबान रख देंगे!!
-मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार – 824236