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7 Oct 2022 · 1 min read

धुंआ धीरे धीरे सुलगता है

** धुंआ धीरे-धीरे सुलगता है **
*************************

वक्त हाथ से जब निकलता है,
आदमी रहता हाथ मसलता है।

खुद ही करता रहता नादानियाँ,
खामख्वाह औरों पर बरसता है।

कोई क्या जाने भला मजबूरियां,
सोना तपकर हो तो निखरता है।

पीठ पर खोपकर ख़ंजर हरदम,
सीना तान कर फिर गरजता है।

मनसीरत मत देख गोले आग के,
उठा धुंआ धीरे-धीरे सुलगता है।
*************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
75 Views
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