धुँध
धुँध
धुँध पड़ गयी रिश्तों में
रंजिशों को पकड़े है
लाख जतन कर छूटे ना
शक का कोहरा जकड़े है
धुंधला गई तनहा यादें
मलालों का कुहासा है
तल्खियों के मौसम में
इश्क़ धुआँ धुआँ सा है
पग पग आगे जो बढ़ो
कोहरा छँटता जाएगा
धूप का एक नन्हा टुकड़ा
आख़िर में मिल जाएगा
कह रही कुछ धड़कने
एक बार सुनो तो सही
मिल जाएगी मंज़िलें
तुम थोड़ा चलो तो सही
रेखांकन।रेखा