धीरे धीरे
चलता चल नदी के तीरे तीरे
मिलेगा सबकुछ तुम्हें धीरे धीरे
मिल जाए नाव तुम्हें जब
पार कर नदी को तू धीरे धीरे।
चाहतें होंगी पूरी धीरे धीरे
कदम बढ़ाएगा आगे जो धीरे धीरे
है जो भी बाधाएं राह में तेरी
सब दूर हो जाएगी वो भी धीरे धीरे।
जो होगी इच्छा धृढ़ तेरी
सागर भी सूख जाएगा धीरे धीरे
देखकर उसको डरने की ज़रूरत नहीं
उसे भी पार कर जाएगा तू धीरे धीरे।
बढ़ेगा हौसला कईयों का देखकर
मंज़िल मिलेगी तुम्हें जब धीरे धीरे
रख थोड़ा धैर्य कुछ पाने के लिए
बर्फ के पहाड़ भी पिघल जायेंगे धीरे धीरे।
कोई कुछ सीखकर नहीं आता
सबकुछ यहीं सीखता है धीरे धीरे
है ये बदलाव ही सृष्टि का नियम
बच्चा ही जवान बनता है धीरे धीरे।
देखता है सपने जो इंसान, उन्हें वो
अपनी मेहनत से पूरा करता है धीरे धीरे
रात के बाद ही सुबह होती है
और फिर दिन चढ़ता है धीरे धीरे।
मेहनत और धैर्य चाहिए बस तुम्हें
सब काज पूरे हो जाएंगे धीरे धीरे
पढ़ने की इतनी भी क्या जल्दी है
इस कविता को पढ़ लेकिन धीरे धीरे।