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7 Mar 2022 · 1 min read

एक वक्त, एक काल

काली, बहुत काली केश सी
छा रही मानो वो गहरी रन्ध्र
दिखता नहीं, उजाला नहीं
धीरे – धीरे………
खग भी जा चुकी
कहाँ, कोई पाया नहीं
एक वक्त, एक काल
देखा मरघट या पनघट में
असमंजस भरा
अंतिम बेला या नव्य जीवन !
आशाएँ टूट चुकी, वक्त भी नहीं
मर गयी इच्छा, सन्तुष्टि नहीं
बीत गयी, अब तन्हा ही तन्हा
छोड़ चले यहाँ से………
रहा नहीं जाता, असह्य स्थिति
जल नहीं, सुकून में अब नहीं
अंगार की ज्वाला भभक उठा
बुझाने पर वायु भी संगी उसकी
पेट भरने, बचा नहीं विपिन
अंदर जलन, देती मुझे कफन
मृत्यु में वो या हम भला
समझ नहीं आता मुझे।
सूर्य भी घूमने निकले कहीं ओर
चन्द्रमा देती नहीं शीतलता
कीमत लेती अब वो…….
बाजारों के मोल से बहुत अधिक !
चहुंओर विष ही विष
जहाँ जाऊँ वही फैली कफन
इसलिए……
काली, बहुत काली केश सी
छा रही मानो वो गहरी रन्ध्र.

Language: Hindi
545 Views
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