धीरे-धीरे समय सफर कर गया
समन्दर जैसा उनका मन
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“कितना सुंदर प्यार तुम्हारा..!
माँ मैं तेरा राज दुलारा ..!!
तेरा मुखड़ा चांद का टुकड़ा..!
क्यूँ लगता है उखड़ा- उखड़ा !!
माँ लोरी सुनाओ ना..!
गोद में सुलाओ ना..!!
कितना कोमल हाथ तुम्हारा..!
सर थोड़ा सहलाओ ना..!!
आँचल तले छुपाकर..!
माँ गोद में सुलाओ ना ..!!
पापा जी के उंगली पकड कर..!
माँ चलना सीखाओ ना..!!
कितना सुंदर प्यार तुम्हारा..!
माँ मैं तेरा राज दुलारा ..!!
पापा के आँखों का तारा ..!
बनूँगा माँ लाठी तुम्हारा”..!!
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*✍️प्रतिभा कुमारी (गया)✍️