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25 Feb 2024 · 1 min read

धीरे-धीरे रूप की,

धीरे-धीरे रूप की,
ढल जाती है धूप ।
काल न जाने रंक को,
काल न जाने भूप ।।

सुशील सरना / 24-2-24

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