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2 May 2024 · 1 min read

वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

काफिया – “आये” की बंदिश
रदीफ़ – बहुत
ग़ज़ल
21 2 2 2122 212
ख़्वाब बनकर याद वो आये बहुत।
अश्क़ आँखों से छलक जाये बहुत।

दूरियाँ तो रास अब आती नहीं,
ये जुदाई हमको तड़पाये बहुत।

रोग ये कैसे मेरे दिल को लगा,
पहले-पहले हम भी घबराये बहुत।

इश्क़ का इज़हार जब से कर गये,
हम अकेले में भी शरमाये बहुत।

लौटआना इस कदर मुमकिन नहीं,
अब तो आगे हम निकल आये बहुत।

नीलम शर्मा ✍️

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