‘धीरज’
कैसी जगत में, प्रभु की माया।
कहीं धूप है, तो कहीं है छाया।।
कभी दुख ने,आँखों को रुलाया।
सुख ने भी आकर, हमें हंसाया।।
धीरज रख हे मन!शांत चित हो।
संकट से तुम, मत विचलित हो।।
लक्ष्य तुम्हारा, पूर्व निर्धारित हो।
सुभाव मन में,सदा संचारित हो।।
कली कुम्हलाई,पानी की आस में।
हो प्रतिक्षण रक्षा, साध्य पास में।।
बीते फिर जीवन, हास-परिहास में।
नाम लिखा जाओ, तुम इतिहास में।।
निश्चित समय पर, काम हैं होते।
ऋतु अनुसार ही, बीज हैं बोते।।
जब आये निशा,तब ही हैं सोते।
चिंता का फिर, भार क्यों ढोते।।
धैर्य धार कर, कर लो प्रतीक्षा ।
समय आने पर, पूर्ण हो इच्छा।।
समझ इसे,जीवन की परीक्षा।
श्रेष्ठ जनों से,लो इसकी दीक्षा।।
⭐-Gn✍