धीरज
कहो बांह पर किस योद्धा के
चोट के निशान नहीं ,
कहो किस कहानीकार के
टूटे हुए अरमान नहीं ,
किस साधु की बुद्धि कहो
बिना कष्ट बन आई है ,
कहो कौन है हुआ प्रसिद्ध
जिसने पिया अपमान नहीं !
किसकी आंखों ने न देखा
मन का यह काला अंधेरा ,
किसके मन में हुआ नहीं
भविष्य के भय का डेरा ,
किसके होंठ नहीं कांपे
हृदय गले में न आया ,
किसने खुलकर जिया जीवन
जिसको मृत्यु का ज्ञान नहीं !
जब घनघोर हुआ अंधेरा
तभी सूरज का उदय हुआ है
तब ही पनपा है नवजीवन
जब दुर्दांत प्रलय हुआ है ।
जिसने जितना भार सहा
वह उतना ऊपर आया है ।
जिसने जितने अश्क सधाए
वह उतना मुस्कुराया है ।
-ॠषभ