धारा छंद 29 मात्रा , मापनी मुक्त मात्रिक छंद , 15 – 14 , यति गाल , पदांत गा
धारा छंद 29 मात्रा , मापनी मुक्त मात्रिक छंद , 15 – 14 ,
यति गाल , पदांत गा
मुक्तक
सुख की भी हम देखे शान , दुख भी कहकर कब आता |
कहाँ करें हम अब विश्वास , यह सबको ही निपटाता |
बचपन यौवन होता हीन , जर्जर होती है काया –
कितना भी हम जोड़े द्रब्य , यहीं छूटता सब जाता |
सुभाष सिंघई √
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धारा छंद 29 मात्रा , मापनी मुक्त मात्रिक छंद , 15 – 14 ,
यति गाल , पदांत गा
मुक्तक
मौसम हरदम आते पास , बदले भी सदा महीना |
पता नहीं पर चलती राह , कब आए कहाँ पसीना |
सूरज चंदा करें प्रकाश , ताप शीत के हैं दानी –
जग में पाते दोनों मान , सिखलाते सबको जीना |√
सुभाष सिंघई
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