धारणाएँ टूट कर बिखर जाती हैं।
धारणाएँ टूट कर बिखर जाती हैं,
संबंधों की आर में जब ये छली जाती हैं।
विजय शत्रुओं पर तो मिल जाती है,
अनुभव तो अपनों का घात करवाती है।
समक्ष आये तो घावों को सहलाती हैं,
परन्तु पीठ पीछे घृणित रूप दिखाती हैं।
मार्गदर्शन को हथियार बनाती हैं,
और आरोपों के बौछार कर जाती हैं।
तुलनाओं में स्वंय को ऊँचा बताती हैं,
और आचरण पर तुम्हारे प्रश्न चिन्ह लगाती हैं।
विखंडन की राह में तुम्हें भटकाती हैं,
और स्वयं के घर को सिमटा हुआ दिखाती हैं।
आत्मसम्मान को हठ बताती हैं,
और अस्तित्व को करवाहट से कुचल जाती हैं।
संदर्भों का सार धर्म से उठाती हैं,
और तुम्हारी पीड़ा को व्यंग्य बताती हैं।
ईर्ष्या की अग्नि में स्वंय को जलाती हैं,
और उचित अनुचित का खेल रचाती हैं।
कालचक्र के भी क्या कहने,
अपनों से अपनों को चुराती हैं।