धान पराली की एक दवा
सोच किसान पराली न जला,देख धुआँ हो गया है बला।
साँसों में घुल रोगी करता,लाता है ज़ल्दी मौत बुला।।
हर छोर प्रदूषित ये करता,
धरती-अंबर इससे डरता,
सब बीमारी का ये दाता,
जीवन के पर आज कुतरता,
दिन-क्रम ठण्डा चहुँ ओर चला,सरकार खड़ी ले हाथ मला।
सख़्त क़दम क्यों नहीं उठाती,हो जाए सबका मान भला।।
वेस्ट डिकॉम्पोज़र एक दवा,
रोग पराली को दे रेत मिला,
खाद बनेगी उच्च पराली,
क्यों व्यर्थ रहा है आज जला,
खेत किसान करे तब न गिला,जब सरकार चले हाथ मिला।
जनहित के सारे काम करे,समझो फिर संकट दूर टला।।
पर्यावरण बचाना होगा,
अब निज स्वार्थ भगाना होगा,
वरना वो दिन भी दूर नहीं,
मिट्टी में मिल जाना होगा,
रोगी जीवन एक नरक है,पल-पल मरना है एक सिला।
समझो समझाओ सबको सब,सुंदर जीवन की यही कला।।
आर.एस.प्रीतम
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