धागा
रहीम के धागे से थोड़ा इतर है ये धागा
जिसके हर गाँठ में प्रेम है विश्वास है
ये धागा मन के, बातों के, जज्बातों के
एक अरसे से लगी हर एक गांठ को खोल देता है
और उसके एवज में धागे के कुछ हिस्से में बाँध देता है
वचन, प्रेम, भरोसा और न जाने क्या -क्या
रक्षासूत्र के गाँठ में ही तो बसती है आस्था
जो गाँठ को महज एक गाँठ नहीं रहने देती
रक्षासूत्र का हर एक धागा दूसरे सिरे के धागे से
एक अटूट और भरोसे का साँठ -गाँठ कर लेता है
और वर्षों -वर्षों के लिए प्रेम के रंग में रंगीन हो जाता है
बिखेरता रहता है जीवन में सौहार्द रूपी रंगीन खुशियाँ
-सिद्धार्थ गोरखपुरी