धऱती की शोभा ये तो जगतीकापरिथान: जितेन्द्र कमल आनंद (४८)
घनाक्षरी:: ४८
धरती की ळोभा से तो जगकी का परिधान
वृक्ष प्राण- बल ये तो जगत के शोभा- धाम ।
ये अपने लौंदर्य से रिझाते हैं सभी को ही ,
स्वय्ं का जीवन देखो ! इनका प्रिय निष्काम ।
हरे- भरे तरुवर अभिराम लगते बैं ,।
थके- हारे पथिकों को है देते यही विश्राम ।
दाता हैं आनंद के ये ,सम्पत्ति- निधान भी तो ,-
वृक्ष देव को करें हम शत,- शत प्रणाम !!
—– जितेन्द्र कमल आनंद