धर्म
कष्ठ होते भी, धर्म में जीओ।
धर्म का ही अंतिम विजय है।
रावण भी बडा भक्त था।
मगर अधर्म मार्ग को चुना।
वाली भी वीर था।
मगर अधर्म मार्ग को चुना।
विभीषण असुर के भाई था।
फिर भी धर्म मार्ग को चुना।
कृष्ण भी अर्जुन को
धर्म बोध किया।
अर्जुन भी वीर था।
वृक्ष भी फूलता- फलता है।
अपना धर्म निभाता है।
सूर्य भी सुप्रभात से
अपना धर्म निभाता है।
वर्ष भी समय पर आकर
अपना धर्म निभाता है।
पकृति भी अपना धर्म निभाता है।
नही तो प्रलय संभव है।
पशु – पक्षी भी अपना धर्म निभाता है।
नही तो पृथ्वी में कोई नही बचता है।
हे मानव, आप भी
अपना धर्म निभावो।
धर्म मार्ग में जीने वाला
भगवान बनजाता है।
जि. विजय कुमार
हैदराबाद, तेलंगाना