धर्म
(अरुण कुमार प्रसाद)
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धर्म खुश
अगरबत्तियाँ जलीं।
धर्म प्रारंभ
भाले नुकीले।
धर्म असभ्य।
कबीले सभ्य।
धर्म संपन्न।
विवेक भव्य।
धर्म, युद्ध।
वर्चस्व क्रुद्ध।
धर्म दंगा।
कोई है नंगा।
धर्म स्तब्ध।
‘मैं’ क्यों दग्ध!
धर्म विह्वल।
एकता विफल।
धर्म नारा।
ईश्वर हमारा।
धर्म अंधा।
पुरोहितों का कंधा।
धर्म प्रवृति।
पराजित प्रकृति।
धर्म क्रुद्ध।
‘मेरे’ नाम पर युद्ध!
धर्म क्या?
जीने की विधा।
धर्म क्यों?
सभ्यता सुसंसकृत हों।
धर्म कहाँ?
बेतरतीबी जहां।
धर्म कैसा?
जीवंत जैसा।
धर्म श्वेत।
अहिंसक वेश।
धर्म घृणा।
किसीकी है तृष्णा।
धर्म गंदा।
वाचक का धंधा।
धर्म स्याह।
दु:ख,दर्द,कराह।
धर्म शिक्षक।
मानवता का रक्षक।
धर्म बढ़े।
हमें गढ़े।
अथवा मरे।
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