धर्म युद्ध
महाभारत के युद्ध में भी एक व्यक्ति धर्म निरपेक्ष रहे हैं। जब महाभारत युद्ध के समय दुर्योधन ने नारायणी सेना मांगी तथा अर्जुन ने वासुदेव को मांगा तो बात बलराम जी पर गयी। पूछा गया कि बलराम जी किधर से युद्ध करेंगे। बलराम जी से युद्ध के बारे में पूछा गया तो उन्होंने युद्ध मे तटस्थ रहने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि दोनों तरफ मेरे अपने हैं। अर्जुन मेरा रिश्तेदार है तो दुर्योधन मेरा शिष्य है। इसलिए मैं दोनो तरफ से ही नहीं लड़ सकता क्योंकि मैं दोनो तरफ हूँ। ऐसा कहकर बलराम जी युद्ध से मुह मोड़ लिए।
बस, यही वो निरपेक्षता है व्यक्ति की जो आज के समाज को खाये जा रही है। इसका परिणाम भी आपको ज्ञात होगा। महाभारत में धर्म की विजय हुई और जब भीम दुर्योधन को मार रहा था तब बलराम जी अचानक आ पहुँचे। बलराम जी दुर्योधन को बचाने लगे। अंत समय में जब बलराम जी ने अपने कायदे कानून लगाए तो श्री कृष्ण ने उनका प्रवेश निषेध कर दिया।
श्री कृष्ण ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि जब धर्म अधर्म का युद्ध चल रहा था तब आप कहाँ थे?
जब धर्म अधर्म का संघर्ष होने वाला था तब आप किसकी तरफ थे?
जब धर्म स्वयं की रक्षा के लिए आपको बुला रहा था, तब तो आपने तटस्थ रहने का निर्णय ले लिया था, और जब आज युद्ध का परिणाम आ रहा है तब आप इस युद्ध मे किस आधार पर हस्तक्षेप कर रहे हैं?
जब सम्पूर्ण युद्ध में आप युद्धभूमि में नही थे, कहीं यात्रा पर चल दिये थे, तो आज अंतिम दिन आप किस अधिकार से इस धर्म युद्ध में अपने नियम चला रहे हैं?
तब बलराम जी वापस वहाँ से चल दिये और धर्म की विजय हुई।