धर्म युद्ध था पर धर्म कहाँ था ?
धर्म युद्ध था पर धर्म कहाँ था?
धर्म युद्ध था पर धर्म कहाँ था?
तुम ही कहो गीता का मर्म कहाँ था?
मानव हठ था, इर्शिया की गाथा थी,
अहं से उत्पन्न हुई सब बाधा थी।
तुम तो धर्म दूत बन आये थे,
रण में तुम ही तुम बस छाये थे।
तुमने प्रतिज्ञा की थी, शस्त्र नहीं धारोगे,
सारथी बन अर्जुन को रण छेत्र उतारोगे।
भीष्म के प्रहार जब पांडव सह न पाए,
मौन अधिक समय तुम भी रह न पाए।
भूल प्रतिज्ञा अपनी तुमने शस्त्र उठाया था,
महासमर में अपना रौद्र रूप दिखलाया था।
भीष्म ने पांडव सेना पर तीखे प्रहार किये,
कौरव की जीत सुनिश्चित,पांडव की हार किये।
तुमसे रहा न गया, तुमने छल से काम लिया,
भीष्म के सामने शिखंडी का फिर नाम लिया।
विवश हुए गंगापुत्र, युद्ध अब कर ना पाए,
छल का उत्तर छल से देना उनकाे ना भाए।
पार्थ ने बाणों की शैय्या पर उनको गिरा दिया,
कुरु वंश का ध्वज्ज् उस दिन जैसे झुका दिया।
रथ के पहिये भूमि मे जब धसने लगे,
महासमर मे राष्मीरथि भी तब फसने लगे।
तुमने अर्जुन को जाने कैसा ज्ञान दिया,
धर्म का तनिक भी उसने नहीं ध्यान किया।
सूर्यपुत्र को पार्थ ने जैसे मारा था,
कर्ण नहीं उस दिन स्वयं अर्जुन हारा था।
अश्वत्थामा की मृत्यु का तुमने भ्रम फैलाया,
द्रोणाचार्य को भी जाकर झूठा संदेश सुनाया।
पुत्र शोक में द्रोण ने जब शास्त्रों को त्याग दिया,
मस्तक छल से उनका शिष्यों ने ही काट दिया।
गुरु की शिक्षा का भी कहाँ मान रहा?
धर्मयुद्ध में धर्म का किसे ध्यान रहा?
दुर्योधन- भीम जब द्वंद अंतिम करने लगे,
युद्ध की दशा देख तुम भी डरने लगे।
कहीं युद्ध का परिणाम वदल ना जाए,
हाथ आई विजय कहीं फिसल ना जाए।
इशारों में भीम को तुम कुछ समझाने लगे,
भूली हुई प्रतिज्ञा याद जैसे दिलाने लगे।
नियमोें के विरूद्ध उसने फिर प्रहार किया,
छल से कुरुपुत्र का भी संहार किया।
छल का उत्तर छल से ही तो दिया गया,
घाओं को घाओं से ही आखिर सिया गया।
भाई ने भाई को मारा, दादा- पोते सब मारे गए,
इक राज की लालसा मे कितने जीवन वारे गये।
तुम ही कहो गीता का मर्म कहाँ था?
धर्म युद्ध था, पर धर्म कहाँ था?