धर्म बला है…?
धर्म बला है…?
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कोई कहता, ये धर्म बला है,
कोई कहता, धर्म अफीम या शोला है।
पर सच्चाई बयां करती ये दूनियांँ ,
ये न तो बला है और न शोला है।
धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…
देखा है कहीं ऐसा भी जग में,
मां – बाप, अम्मा या वालिद,
चाह्ता जो अधर्मी सुत हो,
धर्मपरायण नहीं हो जीवन में।
धर्म की खातिर जान गंवाते ,
धर्म सपूतों का वसंती चोला है।
धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…
धर्म प्रतिष्ठित भारतभूमि ये तो,
सदियों से ही विश्वगुरु कहलाती।
बुद्ध का सत्य, महावीर का तप है,
श्रीराम का त्याग,श्रीकृष्ण लीला है।
धर्म सहिष्णु, धर्म करूणा है,
धर्म के बिना तो सबकुछ सूना है।
धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…
धर्म को घृणा का औजार बनाकर,
सत्ता स्वार्थ का हथियार बनाकर,
रोपा बीज किसने है यहाँ पर।
भाई-भाई को खून कराकर,
बाप-श्वसुर को खंजर चुभोकर,
इतिहास पलटने से दिखता है।
धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…
हमने तो किसी का न, दिल ही दुखाया,
औरों को भी गले ही लगाया,
लूटपाट न कभी आतंक मचाया।
एक-एक कर था, जो राज्य गंवाया,
अपने महल में ही पद्मिनी बनकर,
सतीत्वरक्षार्थ जौहर पट खोला है ।
धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…
अपने हिंद का साम्राज्य देख लो ,
औरों का विस्तार देख लो।
नहीं धर्म का प्रलोभन देते,
धर्म का ढाल बन, साजिश न रचते।
अपने हक को ही, सब दिन से लड़ते,
काहे को फिर ये मुख खोला है।
धर्म बदनाम हुआ ,यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २६ /१२ / २०२१
कृष्ण पक्ष , सप्तमी , रविवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201