धर्म बनाम धर्मान्ध
धर्म बनाम धर्मान्ध
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धर्म प्रदर्शन कब करता है ,
धर्म स्वयं इक दर्शन है !
अगर प्रदर्शन हुआ धर्म का,
मान इष्ट का मर्दन है !!
धैर्य धर्म की परिभाषा है,
धार्य धर्म की अभिलाषा है!
आज नहीं कल धारण होगा;
निश्चित इस की प्रत्याशा है !!
धर्म जगाये अलख हृदय में ,
धर्म बनाये जगह स्वर्ग में!
टूटे हृदय,धर्म से जुड़ते –
छुपा हुआ है मर्म धर्म में !!
धर्म शर्म की चूनर जैसा,
जो ओढ़े वो सुन्दर दीखे!
मानवता की ढाल धर्म है-
क्या रख्खा है नंगा-पन में !!
भोजन तो तन का रक्षक है,
भजन सदा मन का रक्षक है!
कर्म सदा जीवन रक्षक है –
धर्म समग्र सृष्टि चक्रक है !!
धर्म जहाँ फुटपाथों पर हो,
वहाँ व्यापार निहित होता है !
जहाँ हृदय औ घर भीतर हो –
सच्चा धर्म वही होता है !!
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मौलिक चिंतन/स्वरूप दिनकर
आगरा/22-01-2024
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मौलिक-चिंतन/स्वरूप दिनकर
आखरा