धर्म बड़ा या इंसानियत?
धर्म बड़ा या इंसानियत?
गर कोई किसी की मदद करता है,
उसके हालात पर तरस खाता है,
थोड़ा इंसानियत दिखलाता है,
तो क्या वह बुरा हो जाता है?
माना किसी का धर्म अलग है,
अलग जात-बिरादरी का शख़्स है,
रहन-सहन का अंदाज़ अलग है,
रीति – रिवाज भी अलग है…
पर धर्म क्या इंसानियत से बड़ा है?
अरे, धर्म तो इंसानियत की ही रक्षा सिखलाता है।
बस हर धर्म के अपने-अपने रास्ते हैं,
और अपने-अपने तौर-तरीके हैं,
पर सबकी मंज़िल तो एक ही है।
जीवन के सत्य से रू-ब-रू होना है,
परम पिता परमेश्वर के चरणों में जाना है,
हाॅं, एक दिन इसी मिट्टी में मिल जाना है।
ये दुनिया क्या है?
धन, संपदा, यश, वैभव,
सदा के लिए ये सब नहीं !
यहाॅं चार दिन ही तो जीना है,
एक दिन तो मर ही जाना है,
बस, इतने ही दिनों में तो
इंसानियत दिखलाना है।
सब कुछ मर जाएगा,
इंसानियत नहीं मर पाएगा,
यह अजर-अमर रह जाएगा,
उलझनें जीवन में आएंगी,
कठिन हालात बनाएंगी,
सच्चा इंसान वही कहलाएगा,
जो उलझनों में भी मुस्कुराएगा,
बिना किसी को कुछ बिगाड़े ही,
कोई ठोस पहल कर पाएगा।
क्या इंसानियत को मारकर धर्म की रक्षा करूं,
या धर्म को किनारे कर इंसानियत को बचाऊं?
हम यह न भूलें, धर्म भी इंसानियत के लिए ही है।
सब कुछ अनमोल जीवन के लिए ही है।
इंसानियत ज़िंदा है तभी कुछ है।
ये जीवन सलामत है तभी कुछ है।
( स्वरचित एवं मौलिक )
© अजित कुमार कर्ण ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
@सर्वाधिकार सुरक्षित।
#तिथि : 07 जनवरी, 2024.
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