धर्म क्या है?
धर्म क्या है?
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धर्म त्याग परोपकार सिखा,इस जीवन को शांत बनाए।
मार्ग अहिंसा का देकर ये,मानव मन मधुकांत बनाए।।
संवेदनशील हृदय करता,
पर पीड़ा में शोकाकुल हो।
संग चले ये हिम्मत देता,
नीलगगन-सा ये निश्छल हो।
विष को भी ये अमृत बनाता,नदियों-सा गतिशील बनाए।
पर्वत सम मन अटल बनाकर,तूफ़ानों से जंग सिखाए।।
निज पर की ही हानि करे जो,
धर्म नहीं वो आडंबर है।
छेद करे जो भेद करे जो,
धर्म नहीं वो आडंबर है।
प्रकृति सिखाती पर बंद नयन,ये आडंबर ही करवाए।
मानव को मानव का रिपु कर,आडंबर ही रक्त बहाए।
हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई,
सब धर्मों का एक सार है।
जीत असत्य नहीं सत्य करे,
पर भटकाए अहंकार है।
धर्मभीरु समझो जीवन को,क्यों फिरते उलझे उलझाए।
इच्छाएँ पूर्ण नहीं होती,तन पुष्प खिला और मुर्झाए।।
?आर.एस.प्रीतम?